Know who Kabir Saheb ji is on Kabir Saheb Prakat Diwas ( Kabir Jayanti 2021)?

कबीर साहेब प्रकट दिवस 




नमस्कार दोस्तों जैसा कि आप सभी को पता हैं कि आज कबीर साहेब प्रकट दिवस (कबीर साहेब जयंती २०२१) है तो आईये आज हम आपको कबीर साहेब जी के बारे में कुछ जानकरी देने जा रहे हैं |




दोस्तों आज के ही दिन विक्रमी संवत १४५५ सन १३९८ ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह सुबह ब्रम्हमुहुरत में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजधाम सतलोक से चलकर इस मृतमण्डल में काशी में लहरतारा तालब के अन्दर कमल के फूल पर एक बालक के रूप में प्रकट हुए | जहाँ से नीरू नीमा उनको घर ले गये।

कबीर, ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।

साहेब होकर उतरे, बेटा काहू का नाहीं।
जो बेटा होकर उतरे, वो साहेब भी नाहीं।।

गरीबदास जी की वाणी है -
ना सतगुरु जननी जने, उनके मां न बाप।
पिंड ब्रह्मण्ड से अगम है, जहां न तीनों ताप ।।

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये और अनेकों लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक चले गए। क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।

इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 41 में लिखा है-

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।




शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कुंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन

परमेश्वर जब पृथ्वी पर शिशु रूप में प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा होती है।

गरीब शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुशी भये, लिया ईश कूं गोद।
सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैन।
शिव कूं कर मस्तक धरया, ला मोमन एक धैन। 
गरीब अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहाँ शिव भये दयाल।।

सन् 1398 में शिशु रूप में अवतरित कबीर परमेश्वर जी ने 25 दिन तक कुछ नहीं खाया-पिया। लेकिन ऐसा स्वस्थ शरीर था जैसे प्रतिदिन 9 किलो दूध पीते हों। 25 दिन की उम्र में कबीर साहेब लीला करते हुए कहते हैं कि मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं। नीरू एक बछिया लाया तब शिशु रूपी कबीर परमात्मा कुंवारी गाय का दूध पिया।


गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहीं पालने झूलन्त।
अधर अमान धियान में, कमल कला फुलन्त।।
अन ब्यावर को दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्म गति, तहां शिव भये दयाल।।


गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु है, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।


जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो पूरी काशी परमेश्वर कबीर जी के बालक रूप को देखने को उमड़ पड़ी। बच्चे को देखकर कोई कह रहा है था कि ये बालक ब्रह्मा का अवतार है। कोई कह रहा था साक्षात विष्णु भगवान आये हैं, कोई इन्द्र कुबेर कह रहा है। उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।


गरीब, गोद लिया मुख चूम करि, हेम रूप झलकंत। 

जगर मगर काया करै, दमकै पदम अनंत।।

गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।

ईश कहै परब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।

संत गरीबदास जी कहते हैं कि शिशु रूप में कबीर परमेश्वर जी को देखकर काशी के लोग कह रहे थे कि यह तो कोई देवता का अवतार है। देवता कह रहे थे कि यह स्वयं ईश्वर है और ईश्वर कहते हैं कि स्वयं पूर्ण ब्रह्म पृथ्वी पर आए हैं। 

परमेश्वर कबीर जी जब काशी के लहरतारा तालाब पर बालक रूप में सशरीर अवतरित हुए और जुलाहा दंपति नीरू-नीमा ने बालक रूपी कबीर जी को गोद में लिया। तब उनके शरीर की शोभा अद्भुत थी।



                
देखिये कबीर साहेब जी की बाल लीला
 



भगवान कबीर ही हैं देखिये प्रमाण जो आज भी मौजूद हैं | काशी- मगहर से लेकर गुजरात तक का सफर






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